अंदर जाने वाली ‘सूचना’ का महत्त्व


अंदर जाने वाली ‘सूचना’ का महत्त्व


जो सूचना हमने सोने से पहले ली। सुबह उठेगे तो उसी संकल्प के साथ उठेगे। फिर हम ध्यान रखें कि सुबह उठते ही पहली चीज़ हम अंदर क्या डालते हैं? यह सुबह के नाश्ते के समान है। हमारा नाश्ता बहुत ही स्वास्थ्य वर्धक होना चाहिए। उसी प्रकार सकारात्मक संकल्प मन का भोजन है, इसलिए हमें बहुतही शक्तिशाली संकल्प अपने मन के अंदर भरने चाहिएँ। इसे एक महीने के लिए आजमा कर देखें। एक महीने तक सुबह-सुबह उठकर समाचार-पत्र और रात को सोने से पहले टेलीविजन मत देखो।

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“आज का पुरुषार्थ 07-05-2016


यदि हम मास्टर सर्वशक्तिवान के अभ्यास करते हुए अपना बुद्धियोग सर्वशक्तिवान से जोड़े रखेंगे तो हमे सर्वशक्तियाँ प्राप्त होती रहेगी। हम बहुत पॉवरफ़ुल बनते जायेंगे, हमारी सोई हुई शक्तियाँ जागृत रहेगी क्योंकि बाबा ने हमे बहुत सारी शक्तियाँ पहले से ही दे दी हैं। 

वो सोई रहती हैं, हमे उन्हें जगाये रखना हैं। पर बहुत महत्वपूर्ण बात हैं, हमे मास्टर नॉलेजफ़ुल बनकर रहना हैं। ज्ञान तो हम सभी के पास हैं लेकिन ज्ञान मर्ज रहता हैं, समय पर ज्ञान की सुंदर बाते विस्मृत हो जाती हैं इसलिए मनुष्य धोखा खा लेता हैं लेकिन परमात्म ज्ञान जो सर्वश्रेष्ठ ज्ञान हमे प्राप्त हुआ हैं वो हमारे अंदर सदा ईमर्ज रहे इसके लिए एक छोटा सा काम सभी को करना हैं,

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मधुर याद पत्र “दादी जानकी”


निमित्त टीचर्स तथा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण भाई बहिनों प्रति मधुर याद पत्र (09-03-16)


प्राणप्यारे अव्यक्त बापदादा के अति लाडले, सदा परमात्म प्यार में समाने वाले, बापदादा के आज्ञाकारी, वफादार, फरमानयरदार, संगमयुगी महायोगी,महातपस्वी निमित्त टीचर्स बहिने तथा देश विदेश के सर्वब्राह्मण कुल भूषण भाई बहिने, ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।

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“आज का पुरुषार्थ 05-06-2016


जिस तरह स्थूल भोजन मैं हम ब्राह्मण ध्यान रखते है की जो भोजन देवताओ को प्रिये नहीं वो भोजन को हमारे प्राणेश्वर हमारे खुदा दोस्त स्वीकार नहीं करते। तो उस भोजन को हम भी स्वीकार नहीं करते वैसे ही जिस संकल्पो को बाबा स्वीकार नहीं करते । जो संकल्प विश्व कल्याणकारी नहीं है । जो संकल्प हमारी रॉयल्टी के प्रति -कुल है ही नहीं उन्हें हमें स्वीकार नहीं करना है । यदि हमारी बुद्धि इस श्रेष्ठ संकल्प भोजन से भरपून रहेंगे तो हमारा माइंड बहुत हेल्थी रहेंगे। हमारे मन में से संकल्पो का प्रभा चलते रहेंगे ईश्वरीय ज्ञान ,श्रीमत और जो उसने हमें महान संकल्प हमें दिए है वह हमें याद रहेंगें और तब हम लाइट रह सकेंगें।

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स्वयं का परिचय “” ब्रह्मकुमारीज राजयोग कोर्स ” शिवानी दीदी के साथ “


→ प्रश्नः मैं एक शांत स्वरूप आत्मा हूँ जो मैने भी अनुभव किया है, लेकिन वो आत्मा कौन है जो अभी तक भूत के रूप में हमारे ज़हन में थी।

उत्तरः आत्मा तो आत्मा ही है, उसमें कोई भिन्नता नहीं है, आत्मा वो शक्ति है, सिर्फ अभी तक हमें समझ नहीं थी और हमें लगता था कि आत्मा बस शरीर छोड़ने के बाद की चीज़ है। जब हम शरीर में हैं तब आत्मा क्या है वो स्पष्टता नहीं थी, तो इसीलिए आत्मा शब्द को मृत्यु के साथ जोड़ कर देखा गया कि आत्मा निकल गई है, आत्मा भटक रही है। जब आत्मा अपना शरीर छोड़ती है, तब तो उसे बहुत क्लीयर रियलाइजेशन होती है कि मैं एक शक्ति हूँ………………

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मन की बातें


मन की बातें
ब्र.कु. सूर्य

(सेवा: नेपाल )(बी के)
प्रश्नः बाबा ने कहा बच्चे तुम्हें मन को जीतना है, परंतु मन को जीतना तो असंभव सा ही है। बड़ी तीव्र गति मन की है। यह काम कठिन है परंतु इसे सरल बनाना चाहते हैं…कोई उपाय बताएं।
उत्तरः मन की गति सचमुच ही बड़ी चंचल है। साधना से ही इसे साधा जा सकता है। इसकी घोड़े समान चंचलता को शक्तियों की लगाम से ही वश में किया जा सकता है। कुछ अभ्यास इस प्रकार कर सकते हैं-
कल्प पहले मैंने ही मन को जीता है। इसलिए ही यह यादगार बना कि मन जीते जगत जीत। इसे बार-बार स्मृति में लायें। मन को जीतने वाले ही स्वराज्य अधिकारी हैं। वे ही विश्व राज्याधिकारी बनते हैं। शक्तियों की लगाम से मन को कंट्रोल करो।
इसके लिए बार-बार अभ्यास करें कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ। सभी परमात्म शक्तियाँ मेरे पास हैं। मैं मन का मालिक हूँ। भृकुटि सिंहासन पर विराजमान हूँ। तो जैसा हम बार-बार स्वयं को मानेंगे, वैसा ही बन जायेंगे। मन को साधने हेतु तपस्या तो करनी ही पड़ेगी।
दो तरह के अभ्यास से यदि हम मन की गति को धीमा करें तो मन को ब्रेक लगाना सरल होगा, वे दो साधनाएं हैं- 

1. पाँच स्वरूपों की साधना,

2. स्वमान की साधना। यूं तो इन्हें अत्यधिक करना चाहिए परंतु अमृतवेले के अतिरिक्त सारे दिन में तीन बार बैठकर पंद्रह-पंद्रह मिनट ये साधनाएं करें। इससे मन आनंदित होगा व शांत होगा। जिस स्वरूप को स्मृति में लायें, उसके बारे में चिंतन करें व उसी स्वरूप में देखें। मन-जीत का अर्थ ही है कि हम जिस स्वरूप पर जितना समय स्थित होना चाहें, सहज ही हो सकें। मन भटके नहीं। जिन्हें ये महान प्राप्ति करनी है, उन्हें व्यर्थ सुनने, देखने, बोलने पर अंकुश लगाना होगा, अपनी पवित्रता बढ़ानी होगी व अंतर्मुखी बन सच्चे दिल से साधना करनी होगी।

 

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Brahma Kumaris “Tivra Pursharth” “English”


God is my Satguru. So, think for a while, what would scare the one whose Supreme guide is Almighty authority Himself. How fortunate that soul is whose Satguru is the writing his fortune! So, let us be obedient to our Satguru. In his love, let us pledge to become like Him so that we reflect Him. We must remember that we are always under the canopy of protection of our Satguru. He is ever ready to help us. He loves us tremendously; he gets bound to our love and our right over Him. He is also the Supreme guide who is always with us. All these memories will bring us closer to our Satguru and we will experience his help. Whenever we face obstacles, we can overcome them by remembering Him as the Satguru. 

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Ultimate Happiness “Shivani Bahen ” “ब्र. कु. शिवानी “


“अब दो लोग आये तीन लोग आये चार लोग आये कहा बहुत अच्छी साड़ी है, कहाँ से ली, कितने की है वाह-वाह! अब एक आया उसने कहा ये कैसी साड़ी ली है, ये रंग आपके उपर बिल्कुल अच्छा नहीं लगा रहा, वो ही साड़ी है पाँच मिनट पहले तक वो साड़ी खुशी दे रही थी अब वो ही साड़ी क्या देने लग जाती है दुःख! अब मुझे गुस्सा आने लगता है अब मुझे अस्वीकृति महसूस होने लगती है, फिर मैं औरों के पास जाती हूँ कहती हूँ मेरी साड़ी अच्छी है ना! वो कहते हैं, हाँ अच्छी है! देखो ना उसने क्या बोला उसने अपनी साड़ी देखी है, खुद उसने अपने कपड़े देखे हैं, क्या वो पहनती है बस बोलती रहती है। शुरू हो जाती हैं दुनिया भर की बातें, वो साड़ी दो तीन हजार की बेकार क्योंकि अब मेरी सोच, मेरा विचार गुस्सा, ईर्ष्या, निंदा की तरफ चला गया और फिर हम कहेंगे खुशी थी लेकिन अब वो गायब हो गई। “

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चाहे जितना समय लगे हमें सकारात्मक उर्जा ही प्रवाहित करनी है “ब्र. कु. शिवानी “


हर कोई प्यार चाहता है, हर कोई सहयोग चाहता है, हर कोई कम्पैशन चाहता है, कोई मिला आपको जो यह कहे कि मेरी अलोचना करो तो मैं ज्यादा अच्छा से काम करूंगा। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि समय से ज्यादा काम करवाने की, डांट कर काम करवाने की, इसी तरह सामने वाले को भी आदत पड़ी है डांट खाने की, तो डांट तो पड़ेगी ही। हम दोनां के संस्कार थोड़े ऐसे वाले हुए हैं, लेकिन आप एक बार प्रयास करके देखो कि डांट से नहीं, प्यार से ही काम कराना है। भले वो थोड़ा देर से काम करें हो सकता है कि एक दिन, दो दिन, एक महीना, दो महीना, चार महीना लग जाये काम करवाने के ढंग……

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साक्षी होना ही सहज योग “ब्र.कु. गंगाधर “


आपके भीतर दो चीजें घट रही हैं। एक तो साक्षी है, जो सिर्फ देखता है, सिर्फ दृष्टा है; दृष्टा से भिन्न कभी कुछ भी नहीं है और दूसरी तुम्हारी देह है, तुम्हारा मन है, तुम्हारा संस्कार है, तुम्हारे विचार हैं। ये सब तुम्हारे साक्षी के सामने से गुजरते हैं। लेकिन तुम इन्हें सिर्फ देखते नहीं, इनके साथ अपना रागरंग बना लेते हो, इनके साथ आसक्ति निर्मित कर लेते हो। एक ऐसा बादल जो तुम्हारे चित्त पर से गुजरता है और जो तुम्हारे मंसा को ढ़क लेता है, वो बादल हैं तुम्हारे पुराने संस्कार। इन्हीं पुराने संस्कारों की वजह से लोग हमें वैसा ही देखते हैं जैसे वे खुद हैं। Read More @….

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