तीव्र पुरुषार्थ


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हमे अपने मन में द्र्ढ संकल्प रखना हैं। चाहे कुछ भी हो जायें, मुझें अपनी स्थिति को नहीं बिगाड़्ना हैं। हमे ब्रह्माबाबा के समान अचल अडोल बनना हैं। देखिए छोटा सा चिंतन करे, जो बाते हमारे सामने आती हैं उनकी वेल्यू कितनी होती हैं ..? और जो हमारी श्रेष्ठ स्थिति हैं उसकी वेल्यू कितनी जबरदस्त हैं। ऐसा समझ सकते हैं हमारे सामने आनेवाली बाते पाँच-दस रुपये की और हमारी स्थिति की वेल्यू करोडो रुपये की हैं। तो क्या पाँच-दस रुपये के कारण हम अपनी करोडो की संपत्ति को नष्ट कर देंगे..! अगर हम ऐसा करते हैं तो क्या हम अपने को समझदार और बुद्धिमान कह सकेंगे..? तो द्रढ संकल्प कर ले, कुछ भी हो जायें, बाते तो आयेगी और जायेगी, माया भी आयेगी और चली जायेगी, विघ्न भी आयेंगे और समाप्त हो जायेंगे परंतु मुझें अपनी श्रेष्ठ स्थिति को खोना नहीं हैं। और यह बहुत सुंदर अनुभव होगा कि जितनी हमारी स्थिति श्रेष्ठ रहेगी, यह परिस्थिति और समस्याए नष्ट हो जायेगी, बदल जायेगी।

बाबा ने पहले ही बता दिया कि जितना तुम आगे बढोगे, माया के पेपर उतने ही ज्यादा आयेंगे। यह आगे बढने का हमारा एक चिन्ह भी हैं और हम इससे अपनी शक्तियो को भी बढाते चले। तो कुछ भी हो जायें, हमे अचल अडोल रहना हैं। यही फ़ॉलो फ़ाधर करने का एक बहुत सुंदर तरीका होगा। हमारी स्थिति पर्वत के चट्टान की तरह शक्तिशाली बन जायें। अगर कोई पर्वत से टकरायेगा तो पर्वत थोड़ा ही टूटेगा..! उसका ही सिर फ़ुटेगा। हम भी इतने शक्तिशाली बन जायें कि बाते आए, हम से टकराये और नष्ट हो कर समाप्त हो जायें, चली जायें, बिलकुल लोप हो जायें सदा के लिए। हमे याद रखना हैं, हम मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, हमे कौन साथ दे रहा हैं..! अपने अंदर संकल्पो की द्रढता को बढाते चले। यह द्रढता बहुत इंपोर्टंट चीज़ हैं। परंतु यदि हमे अपनी स्थिति को ऐसी अचल अडोल और शक्तिशाली बनानी हैं जिस पर कोई भी प्रभाव ना पड़े, तो हमे त्रिकालदर्शी बनना होगा। मैं कभी-कभी श्री कृष्ण की जो कहानीयाँ पढ़ता या सुनता हूँ, तो मैं देखता हूँ कि वह महान पुरुष भिन्न भिन्न परिस्थितियो में मुसकुरा रहा हैं, उसकी स्थिति नहीं बिगड़ रही हैं, वह अचल अडोल हैं क्योंकि वह हर घटना को त्रिकालदर्शी हो कर देखता हैं। उसे पता

हैं, यह जो घटना हो रही हैं इसके बाद भविष्य कैसा होनेवाला हैं। सहजभाव से हर चीज़ ले लेता हैं। तो अपने अंदर इसी तरह साक्षीभाव बढ़ाते चले। हर बात को पोजिटिव (सकारात्मक) लेते चले। किसी भी बात से परेशान होने की जरुरत नहीं हैं। परिवारो में एक व्यक्ति ज्ञान में चलता हैं, दूसरा साथ नहीं देता हैं, आपको कमेंट्स सुनने पड़्ते हैं, आपको दूसरो की बुरी दृष्टि का सामना करना पड़्ता हैं,आपको विरोध का सामना करना पड़्ता हैं। तो अपने स्वमान को जरा उंचा उठा दे, और याद रखेंगे कि जो आत्मायें श्रेष्ठ पोजीशन (स्थिति) में रहती हैं उनका कहीं भी ओपोजीशन (विरोध) नहीं होता। परंतु यदि कभी आपको ऐसा लगता हो कि स्वमान में रहने के बाद भी लोग बुरा बोलते हैं, तो आप अपने स्वमान को ना छोड़े। जब बुरा बोलने वाला अपनी आदत को नहीं छोड़्ता, तो हम अपनी श्रेष्ठ स्थिति को, अपने श्रेष्ठ स्वमान को भला क्यों छोड़े।

तो आज सारा दिन अभ्यास करेंगे घर जाने का और वापस आने का। संकल्प करेंगे, जो कुछ इन आँखो से दिखाई देता हैं, कुछ समय के बाद यह सबकुछ नहीं रहेगा, एक नया संसार हमारे सामने होगा। हमे विनाशकाल को भी देखना हैं और उसके बाद स्वर्णिमयुग में भी प्रवेश कर लेना हैं। तो साक्षीभाव बढ़ाते चले। अभ्यास करेंगे, “मैं आत्मा इस देह को छोड़ कर उड़ान भरती हूँ ऊपर की ओर, अपने घर परमधाम में जाकर बैठ गई। वहाँ की डीप साईलेन्स (गहरी शांति) की, स्वीट साईलेन्स के अनुभव में आने लगी। बहुत स्वीटनेस हैं इस साईलेन्स में। बहुत गहराई हैं इस साईलेन्स में। फिर सूक्ष्मलोक आ जाये।”फिर नीचे अपने देह में प्रवेश कर ले। तीनो लोको में ऐसे रमण करें कि तीनो लोक ही हमारे घर हैं। यह देह भी मेरा घर, सूक्ष्मलोक भी मेरा घर, परमधाम भी मेरा घर। तीनो में रहने का चैन सुख शांति अनुभव करेंगे।

ओम शांति…


देह – आभिमान क्या हे ? इसे आत्म अभिमानी में केसे बदले ?

(१) ..में शरीर हूँ |
(२).में और मेरापन का भान देह – अभिमान हे |
(२).में सुंदर हूँ | में शक्तिशाली हूँ | में ज्ञानी हूँ | मै महान हूँ | में पुत्रवान हूँ | में धनवान हूँ | में बुधिवान हूँ | में उच्च पदाधिकारी हूँ | में वकील हूँ | में डॉक्टर हूँ | में सम्पत्तिवान हूँ | में भाग्यवान हूँ आदि – आदि |
(३).किसी से लड़ना- झगड़ना , नवाबी में चलना यह भी देह भान हे |
(४).कोई भी बात पर झट बिगड़ पड़ना देह- भान हे |
(५) कोई भी उल्टे- सुलटे कार्य काके नुक्सान करना व मुफ्त बदनामी ले लेना यह भी देह – अभिमान हे |
(६).दुसरो पर अपना अहंकार दिखाना भी देह – अभिमान हे |
(७). अपने को व दूसरों को दुःख व दर्द ही देते रहना यह भी देह- अभिमान हे |
(८).अपनी देह को सजाते सवारते रहना व दुसरो की देह प्रति आकर्षित होना व किसी के नाम -रूप में फसना यह भी देह – अभिमान हे |
(९).इन्द्रिय सुखो के पीछे भागना यह देह – अभिमान हे |
(१०).आसुरी संस्कारों ( अवगुणों ) का बार बार पालन करते रहना यह भी देह- अभिमान हे |
(११).बुधि का व्यर्थ बातो में इधर- उधर भटकना यह भी देह – अभिमान हे |
(१२). देह- अभिमान के कारण बार – बार रोना , रूठना , तनाव आना , दुखी होना , समस्याओं में घिरना , कष्टों में अपने को अनुभव करना महसूस करते हो |
(१३). क्रमिन्द्रिय सुखों में लगे रहना और अतिइन्द्रिय सुखो का लोप होना ही देह अभिमान हे |
नोट :- पहले देह – अभिमान आता हे फिर उसके पीछे- पीछे पांच विकार ( काम , क्रोध , लोभ , मोह और अहंकार )आता हे |फिर अन्य विकार भी साथ- साथ आने लग जाते हे |
सभी अवगुणों , आसुरी वर्तियो , दुखो , दर्दो , कष्टों , पतन आदि का मुख्य बीज
देह – अभिमान हे | अत: इस देह – अभिमान को जड़ से समाप्त करने का तीव्र पुरषार्थ करना चाहिए | तभी इन सबसे छुटकारा हो सकता हे |
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……………(देही अभिमानी केसे बने ? )…………………………..

(१)..में यह शरीर नहीं बल्कि शरीर में रहने वाली इस शरीर को निमित रूप से इन क्रमिन्द्रियो द्वारा चलाने वाली ज्योतिर्बिंदु निराकारी आत्मा हूँ |
” में शरीर नहीं में आत्मा हूँ |” “में आत्मा इस शरीर से न्यारी इस शरीर से अलग चेतन्य शक्ति हूँ |” “यह शरीर अलग में आत्मा अलग हूँ |”

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इसका सारा दिन अभ्यास करना हे |
(२).आत्मा के मूल स्वरूप जों दबे हुए हे उन्हें ऊपर लाने के लिए आत्मा के सातों का अभ्यास करते रहना हे :-
(१)में आत्मा शांत स्वरूप हूँ |
(२). में आत्मा पवित्र स्वरूप हूँ |
(३). में आत्मा शक्ति स्वरूप हूँ |
(४). में आत्मा ज्ञान स्वरूप हूँ |
(५). में आत्मा सुख स्वरूप हूँ |
(६).में आत्मा प्रेम स्वरूप हूँ |
(७). में आत्मा आनंद स्वरूप हूँ |
इन आत्मिक स्वरूप को अपने में बढाते चले | इसका लगातार अभ्यास करते रहे |
(३).अपने को आत्मा समझ परमपिता परमात्मा शिव को ज्वालास्वरूप में याद करे योग बल जितना – जितना बढ़ता रहेगा उतना – उतना आत्मिक स्वरूप में स्थित होने से कर्मेन्द्रियाँ शांत होने लगेगी और आप अति इन्द्रिय सुखों को महसूस करने लगेगे | आप देह – अभिमान से देही – अभिमानी स्तिथि में स्थित होते जायेगे | आत्मा से जन्मो – जन्मों से पाप हटते जाएगे | आत्मा पावन होती जायेगी | चलन सुधरने लगेगी | मन – चित्त शांत होता जाएगा | पवित्रता का स्तर बदने लगेगा | देह का अहंकार समाप्त होने लगेगा |
(४)ट्रस्टी की भावना से भी आप आत्म अभिमानी होने लगेगे | मेरे पास जों कुछ हे वह सब बाबा का हे में तो ट्रस्टी रूप में सभी संभाल रहूँ | मेरा तो यह शरीर भी नहीं हे यह भी परमात्मा को अर्पित हे जब मेरा इस दुनिया में कुछ भी नहीं हे तो इस पुरानी दुनिया व देह धारियों से क्या लेना – देना | मेरा तो एक शिव बाबा दुसरो न कोई | यह सोच का बार – बार मनन करना व मानना भी देहि – अभिमानी ( आत्म अभिमानी ) बनता हे |
नोट :- इसके अलावा आप इन बातो को भी फालो करे |
(१) ईश्वरीय ज्ञान का मंथन मनन चिंतन करना |
(२). योग बल का पूरा – पूरा पुरषार्थ करना |
(३). ईश्वरीय मर्यादा का सदा पालन करना |
(४) ईश्वरीय श्रीमत व ईश्वरीय ज्ञान की धारणा करते रहना |
(५).देह को सजाने में अपना समय नहीं गवायेगे |
(६).सांसारिक इच्छाओं का त्याग |
(७).अच्छे पहनावे , उच्च पकवानों की चाहत का त्याग |
(८).देवीय गुणों को अपनाने व अवगुणों का त्याग करे |
(९). शुद्ध संकल्पों को ही मन बुधि की खुराक देते रहे |
(१०).अंतिम समय की स्मिर्ती सदेव याद रखना |


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