Days-2

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 दूसरा दिन

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तीन लोक कौन से है और शिव का धाम कौन सा है ?

मनुष्य आत्माएं मुक्ति अथवा पूर्ण शान्ति की शुभ इच्छा तो करती है परन्तु उन्हें यह मालूम नहीं है कि मुक्तिधाम अथवा शान्तिधाम है कहाँ ? इसी प्रकार, परमप्रिय परमात्मा शिव से मनुष्यात्माएं मिलना तो चाहती है और उसी याद भी करती है परन्तु उन्हें मालूम नहीं है कि वह पवित्र धाम कहाँ है जहाँ से हम सभी मनुष्यात्माएं सृष्टि रूपी रंगमंच पर आई है, उस प्यारे देश को सभी भूल गई है और और वापिस भी नहीं जा सकती !!
१. साकार मनुष्य लोक – सामने चित्र में दिखाया गया है कि एक है यह साकार ‘मनुष्य लोक’ जिसमे इस समय हम है | इसमें सभी आत्माएं हड्डी- मांसादि का स्थूल शरीर लेकर कर्म करती है और उसका फल सुख- दुःख के रूप में भोगती है तथा जन्म-मरण के चक्कर में भी आती है | इस लोक में संकल्प, ध्वनि और कर्म तीनों है | इसे ही ‘पाँच तत्व की सृष्टि’ अथवा ‘कर्म क्षेत्र’ भी कहते है | यह सृष्टि आकाश तत्व के अंश-मात्र में है | इसे सामने त्रिलोक के चित्र में उल्टे वृक्ष के रूप में दिखायागया है क्योंकि इसके बीज रूप परमात्मा शिव, जो कि जन्म-मरण से न्यारे है, ऊपर रहते है |
२. सूक्ष्म देवताओं का लोक – इस मनुष्य-लोक के सूर्य तथा तारागण के पार आकाश तत्व के भी पार एक सूक्ष्म लोक है जहाँ प्रकाश ही प्रकाश है | उस प्रकाश के अंश-मात्र में ब्रह्मा, विष्णु तथा महदेव शंकर की अलग-अलग पुरियां है | इन्स देवताओं के शरीर हड्डी- मांसादि के नहीं बल्कि प्रकाश के है | इन्हें दिव्य-चक्षु द्वारा ही देखा जा सकता है | यहाँ दुःख अथवा अशांति नहीं होती | यहाँ संकल्प तो होते है और क्रियाएँ भी होती है और बातचीत भी होती है परन्तु आवाज नहीं होती | 
३. ब्रह्मलोक और परलोक- इन पुरियों के भी पार एक और लिक है जिसे ‘ब्रह्मलोक’, ‘परलोक’, ‘निर्वाण धाम’, ‘मुक्तिधाम’, ‘शांतिधाम’, ‘शिवलोक’ इत्यादि नामों से याद किया जाता है | इसमें सुनहरे-लाल रंग का प्रकाश फैला हुआ है जिसे ही ‘ब्रह्म तत्व’, ‘छठा तत्व’, अथवा ‘महत्त्व’ कहा जा सकता है | इसके अंशमात्र ही में ज्योतिर्बिंदु आत्माएं मुक्ति की अवस्था में रहती है | यहाँ हरेक धर्म की आत्माओं के संस्थान (Section) है |
उन सभी के ऊपर, सदा मुक्त, चैतन्य ज्योति बिन्दु रूप परमात्मा ‘सदाशिव’ का निवास स्थान है | इस लोक में मनुष्यात्माएं कल्प के अन्त में, सृष्टि का महाविनाश होने के बाद अपने-अपने कर्मो का फल भोगकर तथा पवित्र होकर ही जाती है | यहाँ मनुष्यात्माएं देह-बन्धन, कर्म-बन्धन तथा जन्म-मरण से रहित होती है | यहाँ न संकल्प है, न वचन और न कर्म | इस लोक में परमपिता परमात्मा शिव के सिवाय अन्य कोई ‘गुरु’ इत्यादि नहीं ले जा सकता | इस लोक में जाना ही अमरनाथ, रामेश्वरम अथवा विश्वेश्वर नाथ की सच्ची यात्रा करना है, क्योंकि अमरनाथ परमात्मा शिव यही रहते है |

निराकार परम पिता परमात्मा और उनके दिव्य गुण

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प्राय: सभी मनुष्य परमात्मा को ‘हे पिता’, ‘हे दुखहर्ता और सुखकर्ता प्रभु’, (O Heavenly God Father) इत्यादि सम्बन्ध-सूचको शब्दों से याद करते है | परन्तु यह कितने आश्चर्य की बात है कि जिसे वे ‘पिता’ कहकर पुकारते है उसका सत्य और स्पष्ट परिचय उन्हें नहीं है और उसके साथ उनका अच्छी रीती स्नेह और सम्बन्ध भी नहीं है | परिचय और स्नेह न होने के कारण परमात्मा को याद करते समय भी उनका मन एक ठिकाने पर नहीं टिकता |इसलिए, उन्हें परमपिता परमात्मा से शान्ति तथा सुख का जो जन्म-सिद्ध अधिकार प्राप्त होना चाहिए वह प्राप्त नहीं होता | वे न तो परमपिता परमात्मा के मधुर मिलन का सच्चा सुख अनुभव कर सकते है, न उससे लाईट (Light प्रकाश) और माईट (Might शक्ति) ही प्राप्त कर सकते है और न ही उनके संस्कारों तथा जीवन में कोई विशेष परिवर्तन ही आ पाता है | इसलिए हम यहाँ उस परम प्यारे परमपिता परमात्मा का संक्षिप्त परिचय दे रहे है जो कि स्वयं उन्होंने ही लोक-कल्याणार्थ हमे समझाया है और अनुभव कराया है और अब भी करा रहे है |

परमपिता परमात्मा का दिव्य नाम और उनकी महिमा

परमपिता परमात्मा का नाम ‘शिव’ है | ‘शिव’ का अर्थ ‘कल्याणकारी’ है | परमपिता परमात्मा शिव ही ज्ञान के सागर, शान्ति के सागर, आनन्द ए सागर और प्रेम के सागर है| वह ही पतितों को पावन करने वाले, मनुष्यमात्र को शांतिधाम तथा सुखधाम की राह दिखाने वाले (Guide), विकारों तथा काल के बन्धन से छुड़ाने वाले (Liberator) और सब प्राणियों पर रहम करने वाले (Merciful) है | मनुष्य मात्र को मुक्ति और जीवनमुक्ति का अथवा गति और सद्गति का वरदान देने वाले भी एक-मात्र वही है | वह दिव्य-बुद्धि के डाटा और दिव्य-दृष्टी के वरदाता भी है | मनुष्यात्माओ को ज्ञान रूपी सोम अथवा अमृत पिलाने तथा अमरपद का वरदान देने के कारण ‘सोमनाथ’ तथा ‘अमरनाथ’ इत्यादि नाम भी उन्ही के है | वह जन्म-मरण से सदा मुक्त, सदा एकरस, सदा जगती ज्योति, ‘सदा शिव’ है |

परमपिता परमात्मा का दिव्य-रूप

परमपिता परमात्मा का दिव्य-रूप एक ‘ज्योति बिन्दु’ के समान, दीये की लौ जैसा है | वह रूप अतिनिर्मल, स्वर्णमय लाल (Golden Red) और मन-मोहक है | उस दिव्य ज्योतिर्मय रूप को दिव्य-चक्षु द्वारा ही देखा जा सकता है और दिव्य-बुद्धि द्वारा ही अनुभव किया जा सकता है | परमपिता परमात्मा के उस ‘ज्योति-बिन्दु’ रूप की प्रतिमाएं भारत में ‘शिव-लिंग’ नाम से पूजी जाती है और उनके अवतरण की याद में ‘महा शिवरात्रि’ भी मनाई जाती है |

‘निराकार’ का अर्थ

लगभग सभी धर्मों के अनुयायी परमात्मा को ‘निराकार’ (Incorpeal) मानते है | परन्तु इस शब्द से वे यह अर्थ लेते है कि परमात्मा का कोई भी आकार (रूप) नहीं है | अब परमपिता परमात्मा शिव कहते है कि ऐसा मानना भूल है | वास्तव में ‘निराकार’ का अर्थ है कि परमपिता ‘साकार’ नहीं है, अर्थात न तो उनका मनुष्यों जैसा स्थूल-शारीरिक आकार है और न देवताओं-जैसा सूक्ष्म शारीरिक आकार है बल्कि उनका रूप अशरीरी है और ज्योति-बिन्दु के समान है | ‘बिन्दु’ को तो ‘निराकार’ ही कहेंगे | अत: यह एक आश्चर्य जनक बात है कि परमपिता परमात्मा है तो सूक्ष्मतिसूक्ष्म, एक ज्योति-कण है परन्तु आज लोग प्राय: कहते है कि वह कण-कण में है |
 
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12 thoughts on “Days-2

  1. बहुत अच्छा ज्ञान है भाई सीख लो समय रहते हुए नहीं तो एक दिन पछताना पड़ेगा जब यह मनुष्य रूपी शरीर से हमारी आत्मा जाने का अंतिम समय आ जाएगा उस दिन हाय हाय करके रह जाओगे कि हम ने मनुष्य रुपी चोला पाकर अपने अविनाशीय परमपिता परमात्मा को जानकर भी उनको याद नहीं किया उनसे पूछ कमाई नहीं कर पाई सिर्फ धन दौलत और काम और क्रोध की कमाई की पर अपने को अगले जन्म के लिए या फिर मुक्ति के लिए कोई कमाई नहीं की पछताओगे इसलिए मेरे प्यारे भाइयों संभल जाओ समय रहते हुए जब समय निकल जाएगा तो कोई फायदा नहीं होगा संभल जाओ संभल जाओ समझ जाओ

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  2. bhrhma, vishnu , shankar tin sukxm vatan me he to abhi shivajine lekhraj baba ko bhrhma baba kaha to sukxm vatanme bhrhma baba uus samay nahi the kaliyug me lekhraj baba hi bhrhma baba ??
    agar aesa he to satyug me brhma baba ki aatma laxmi narayan kese banegi
    satyug me to vishnuji ko narayan bataya he!!!!!!

    plase muje sahi javab do
    meri ye uulzan ko sulzaoo

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  3. ये किस.समय.शुरू होता है और हम कैसे शुरू कर सकते हैं।

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