कॉलेज में मेरे सब दोस्त नई-पुरानी फिल्मों की बातें करते, खेल मनोरंजन पर चर्चा करते लेकिन मैं गूंगे की भांति सुनकर केवल समझने की कोशिश करता पर कुछ बोल नहीं पाता। ऐसे में मन सृजनात्मक होने की बजाय नकारात्मक होने लगा और कई विकारो ने आ घेरा। → → → →
कॉलेज में मेरे सब दोस्त नई-पुरानी फिल्मों की बातें करते, खेल मनोरंजन पर चर्चा करते लेकिन मैं गूंगे की भांति सुनकर केवल समझने की कोशिश करता पर कुछ बोल नहीं पाता। ऐसे में मन सृजनात्मक होने की बजाय नकारात्मक होने लगा और कई विकारो ने आ घेरा। → → → →